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Ὄντος δέ ποτε βατράχου ἐν τῇ λίμνῃ, ἀνεϐόησε πᾶσι τοῖς ζῴοις λέγων· « Ἰατρός εἰμι φαρμάκων ἐπιστήμων. » « Καὶ πῶς δέ, φησὶν ἀλώπηξ, ἄλλους σῴζεις, σαυτὸν δὲ χωλὸν ὄντα οὐ θεραπεύεις ; » Ὁ μῦθος δηλοῖ ὅτι ὁ παιδείας ἀμύητος ὑπάρχων, πῶς ἄλλους ἀνθρώπους παιδεύσει ; Codd. […] Codd.
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Τοῦ οὖν ἰκτίνου ἐκ τῆς πληγῆς τεθνηκότος, ὁ ὄφις πρὸς αὐτὸν ἔφη· « Τί τοσοῦτον ἐμεμήνεις, ταλαίπωρε, ὅτι τοὺς μηδὲν ἀδικοῦντας βλάπτειν ἐϐούλου ; Δικαίως οὖν ἔδωκας γνώμης δίκην ἀξίαν. » Codd.
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Préface de la première édition Je me propose de publier, en faisant précéder les textes de leur histoire et de leur critique, tout ce qui reste des œuvres des fabulistes latins antérieurs à la Renaissance. C’est une vaste tâche que personne encore ne s’est imposée, et qui, je le crains du moins, m’expose à être un peu soupçonné de présomption. Pour me prémunir contre un pareil soupçon, je désire expliquer comment j’ai été conduit à l’assumer. De tous les auteurs anciens qui guident les premiers pas de l’enfant dans l’étude de la langue latine, Phèdre est celui qui lui laisse les plus agréables souvenirs. Ses fables sont courtes, faciles à comprendre et intéressantes par l’action qui en quelques vers s’y déroule.